ट्विन कविता

इंतजार

वो छत 

सर पर बोझ थे 

उसके पिलर मेरी कोख में गड़े थे

सीने पर रखे थे पत्थर

हर जगह से मैं

टूटी हुई थी

फिर भी आंखे खोल 

मैं पड़ी रही

इंतजार में 


फासला

मैंने गिरा दी है वो दीवार

जो हमारे दरम्यां थी

मैंने उठा दिया है वो पर्दा

जो हवाओं से उलझते थे

उजाड़ दी है वो बस्ती भी 

जहां से गिद्ध तुम्हें तकते थे

अब कोई नहीं है 

दरम्यां हमारे 

सिर्फ फासला है

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