नब्ज थाम कर दर्द की दवा लिख दी
हाथ दिल पर रखता तो इलाज हो जाता
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मेरा तबीब मेरा हिसाब कर देता है
नुस्खा नहीं बताता पर दिल की बात कह देता है
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दिल का मर्ज दवा से दुरूस्त नहीं होता
संजीवनी वो नज़रों से बयां कर देता है
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हर मर्ज की अलग दवा देता है दवाखाना
ये मयखाना है जो मर्ज में कोई फर्क नहीं करता
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उम्मीद…चाहत…भूख की जमींदारी है आदमी
औकात सपनों की बंजर ज़मीन हो गई